झेलम सी बहती तेरी जुल्फे,
इनसे तेरा रुतबा औरो से कामिल कर दिया है
तेरी गुलमोहर की चान में,
जादों की रातो में,
ये इस्तेराब गिरोह क्वार कर दिया है।
बड़ी नादान मलूम पड़ी है तू,
अपने हुस्न का कोई गुरूर नहीं,
जन्नत से कामिल तेरे माताबीक हो,
इसलिए नाम तेरा कश्मीर रख दिया ।
हिमालय की बर्फीली चादर ने,
रेशम सी तेरे ज़हान को,
ओस की बूंद बन कर पुचकार दिया है
तेरे फूलों की घाटी के काम ने,
मेरे भारी दुपेहर में थंडक,
सर हवा में सौंधी सी गरमी का सुख भर दिया है।
तुझसे दूर राहु तो रोज़ आती है तू ख़्वाबों में,
तेरे सुन वदियो ने तो कभी तन्हा नई किया,
पर तेरी यादों ने शहर के फरेब-ए-नजरों से पारे कर दिया है।
दाल के पार शिकारा मैं रात गुजर कर वक्त थाम सा जाता है,
बस इसी ही तेरे हुस्न से रोज़ इस्तेकबाल हो,
अपनी डायरी के पन्नों में, शायरी में,
बड़ी नादान मलूम पड़ी है तू,
अपने हुस्न का कोई गुरूर नई है,
जन्नत से तेरे कामिल मुताबिक हो,
इसलिए नाम तेरा कश्मीर रख दिया ।